हजारों साल पहले फटे एक ज्वालामुखीय पहाड़ की उत्तर कोरिया (North Korea) के लोग पूजा करते हैं. माना जाता है कि इस पहाड़ से ही कोरियाई शासकों का जन्म हुआ था.
नॉर्थ कोरिया एक बार फिर चर्चा में है. दरअसल पूरी दुनिया में तबाही मचा रहे कोरोना वायरस के बारे में कोरिया के सैन्य तानाशाह किम ने कहा था कि उनके यहां ये वायरस नहीं है. अब 7 महीने बाद पहली बार उनके यहां आधिकारिक तौर पर मामला आया है. हरदम रहस्यों में जीने वाले इस देश के बारे में लोग उतना ही जान पाते हैं, जितना बाहर आने दिया जाता है. मिसाल के तौर पर माना जाता है कि किम परिवार का जन्म पेकटू नामक पवित्र पहाड़ के ज्वालामुखी से हुआ, इसलिए वही वंश उत्तर कोरिया पर राज कर सकता है.
पहाड़ों के साथ तस्वीर
साल 2019 के आखिर में इस देश की डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑन कोरिया (DPRK) की सरकारी न्यूज एजेंसी ने एक फोटो छापी. इसमें पेकटू पहाड़ के पास किम घोड़े पर सवार थे. अब इस फोटो में क्या खास है? ये इसलिए खास है क्योंकि इसी पवित्र पहाड़ के पास जाकर किम कई अहम फैसले ले चुके हैं. माना जाता है कि जब भी किम यानी शाही परिवार का कोई अहम सदस्य वहां जाएगा, इसके पीछे पवित्र पहाड़ की प्रेरणा होगी और नॉर्थ कोरिया में कोई न कोई बदलाव आएगा.
क्या है इस पहाड़ में?
पेकटू पहाड़ एक ज्वालामुखीय पर्वत है, जो लगभग हजार साल पहले फटा था. चीन और उत्तर कोरिया की सीमा पर बने इस पहाड़ को कोरियाई पूजते हैं. उनके लिए ये आध्यात्मिक महत्व की जगह है. माना जाता है कि उत्तर कोरियाई राजवंश का जन्म इसी ज्वालामुखी से हुआ था. इसलिए ही उन्हें पहाड़ के नाम पर पेकडू वंश भी कहते हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट में स्ट्रेट्स टाइम्स के हवाले से आया है कि किम संग ने यहीं से जापान के खिलाफ लड़ाई की थी और उनके बेटे किं जोंग द्वितीय का जन्म यहीं हुआ. किम परिवार भी खुद को इसी पेकडू या बेकडू का खून मानता है और कहता है कि उनका काम उत्तर कोरिया संभालना है.
साउथ कोरिया में भी मान्यता
किम लगातार ही इस पर्वत की तरफ आते रहे हैं. वैसे ये पर्वत नॉर्थ कोरिया ही नहीं, बल्कि साउथ कोरिया में भी पवित्र माना जाता है. दोनों देशों के लिए इसके महत्व का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि साल 2018 के अप्रैल में जब साउथ कोरियाई प्रेसिडेंट मून जे-इन और किम जोंग के बीच मुलाकात हुई थी, तो इस पहाड़ का जिक्र आया था. खुद प्रेसिडेंट ने वहां जाने की इच्छा जताई थी लेकिन कथित तौर पर खराब रास्तों के कारण उन्हें वहां नहीं ले जाया गया.
पहाड़ का जिक्र राष्ट्रगान में
चीन में भी ये पर्वत काफी मान्यता रखता है. चीन की सीमा से सटे इस पर्वत को वहां के लोग चंगबाई कहते हैं. कई बार चीन और उत्तर कोरिया में इसपर अधिकार को लेकर तनाव भी हुआ लेकिन साल 1962 में दोनों के बीच संधि हो गई. पेकडू या बेकडू पहाड़ का उल्लेख DPRK के कोड ऑफ आर्म्स और वहां के राष्ट्रगान में भी आता है. माना जाता है कि चूंकि देश के लोग इस पर्वतीय ज्वालामुखी को पवित्र मानते हैं इसलिए ही कोरियाई राजवंश ने इसे अपनी पहचान से जोड़ा.
इस बारे में बीबीसी की एक रिपोर्ट में उत्तर कोरियाई मामलों के विशेषज्ञ माइकल मेडन कहते हैं कि किम इल सुंग ने बेकडू पर्वत पर ही जापानी साम्राज्यवादी ताकतों से गुरिल्ला युद्ध किया था. ये तब की बात है जब कोरिया पर जापान का कब्जा था. इसी के बाद से भ्रम फैलाया गया कि किम परिवार यहीं से निकला है.
विशेषज्ञों की है कुछ और राय
खुद किम जोंग उन के पिता किम जोंग इन की आत्मकथा डियर लीडर में इस बात का जिक्र है कि वे बेकडू पर्वत में स्थित कोरियाई कैंप में जन्मे थे. वैसे इसे बात को लेकर दक्षिण कोरिया कुछ और ही मानता है. वो मानता है कि किम जोंग इल का जन्म साइबेरिया के मिलिट्री बेस में हुआ था. वहीं पर से उन्होंने निर्वासित कोरियाई लोगों की अगुवाई की और बाद में ये भ्रम फैला दिया गया.
पहाड़ों के साथ तस्वीर
साल 2019 के आखिर में इस देश की डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑन कोरिया (DPRK) की सरकारी न्यूज एजेंसी ने एक फोटो छापी. इसमें पेकटू पहाड़ के पास किम घोड़े पर सवार थे. अब इस फोटो में क्या खास है? ये इसलिए खास है क्योंकि इसी पवित्र पहाड़ के पास जाकर किम कई अहम फैसले ले चुके हैं. माना जाता है कि जब भी किम यानी शाही परिवार का कोई अहम सदस्य वहां जाएगा, इसके पीछे पवित्र पहाड़ की प्रेरणा होगी और नॉर्थ कोरिया में कोई न कोई बदलाव आएगा.
माना जाता है कि किम परिवार का जन्म पेकटू नामक पवित्र पहाड़ के ज्वालामुखी से हुआ
क्या है इस पहाड़ में?
पेकटू पहाड़ एक ज्वालामुखीय पर्वत है, जो लगभग हजार साल पहले फटा था. चीन और उत्तर कोरिया की सीमा पर बने इस पहाड़ को कोरियाई पूजते हैं. उनके लिए ये आध्यात्मिक महत्व की जगह है. माना जाता है कि उत्तर कोरियाई राजवंश का जन्म इसी ज्वालामुखी से हुआ था. इसलिए ही उन्हें पहाड़ के नाम पर पेकडू वंश भी कहते हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट में स्ट्रेट्स टाइम्स के हवाले से आया है कि किम संग ने यहीं से जापान के खिलाफ लड़ाई की थी और उनके बेटे किं जोंग द्वितीय का जन्म यहीं हुआ. किम परिवार भी खुद को इसी पेकडू या बेकडू का खून मानता है और कहता है कि उनका काम उत्तर कोरिया संभालना है.
साउथ कोरिया में भी मान्यता
किम लगातार ही इस पर्वत की तरफ आते रहे हैं. वैसे ये पर्वत नॉर्थ कोरिया ही नहीं, बल्कि साउथ कोरिया में भी पवित्र माना जाता है. दोनों देशों के लिए इसके महत्व का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि साल 2018 के अप्रैल में जब साउथ कोरियाई प्रेसिडेंट मून जे-इन और किम जोंग के बीच मुलाकात हुई थी, तो इस पहाड़ का जिक्र आया था. खुद प्रेसिडेंट ने वहां जाने की इच्छा जताई थी लेकिन कथित तौर पर खराब रास्तों के कारण उन्हें वहां नहीं ले जाया गया.
किम परिवार खुद को पेकडू या बेकडू पहाड़ की संतान मानता है
पहाड़ का जिक्र राष्ट्रगान में
चीन में भी ये पर्वत काफी मान्यता रखता है. चीन की सीमा से सटे इस पर्वत को वहां के लोग चंगबाई कहते हैं. कई बार चीन और उत्तर कोरिया में इसपर अधिकार को लेकर तनाव भी हुआ लेकिन साल 1962 में दोनों के बीच संधि हो गई. पेकडू या बेकडू पहाड़ का उल्लेख DPRK के कोड ऑफ आर्म्स और वहां के राष्ट्रगान में भी आता है. माना जाता है कि चूंकि देश के लोग इस पर्वतीय ज्वालामुखी को पवित्र मानते हैं इसलिए ही कोरियाई राजवंश ने इसे अपनी पहचान से जोड़ा.
इस बारे में बीबीसी की एक रिपोर्ट में उत्तर कोरियाई मामलों के विशेषज्ञ माइकल मेडन कहते हैं कि किम इल सुंग ने बेकडू पर्वत पर ही जापानी साम्राज्यवादी ताकतों से गुरिल्ला युद्ध किया था. ये तब की बात है जब कोरिया पर जापान का कब्जा था. इसी के बाद से भ्रम फैलाया गया कि किम परिवार यहीं से निकला है.
विशेषज्ञों की है कुछ और राय
खुद किम जोंग उन के पिता किम जोंग इन की आत्मकथा डियर लीडर में इस बात का जिक्र है कि वे बेकडू पर्वत में स्थित कोरियाई कैंप में जन्मे थे. वैसे इसे बात को लेकर दक्षिण कोरिया कुछ और ही मानता है. वो मानता है कि किम जोंग इल का जन्म साइबेरिया के मिलिट्री बेस में हुआ था. वहीं पर से उन्होंने निर्वासित कोरियाई लोगों की अगुवाई की और बाद में ये भ्रम फैला दिया गया.
0 Comments