साल के शुरू में हुआ था दो बड़े Neutron तारों का टकराव, अब पता चला कैसे
वैज्ञानिकों की एक टीम ने दावा किया है कि वे न्यूट्रॉन स्टार (Neutron Stars) के टकराव और उससे बनने वाले अतिविशालकाय तारे के निर्माण की व्याख्या कर सकते हैं.

नई दिल्ली: खगोलीय घटनाओं (Astronomical Events) की व्याख्या करना आसान नहीं होता. इनके अवलोकन के साधन सीमित और जटिल होते हैं. इसके बाद असीमित घटनाओं और वस्तुओं से भरे ब्रह्माण्ड में उनकी व्याख्या और कठिन बना देती है. यह काम तब और मुश्किल हो जाता है जब शोधकर्तां ने कोई घटना पहली बार देखी हो. ऐसा ही हुआ जब वैज्ञानिकों ने दो न्यूट्रॉन तारों (Neutron Stars) में दुर्लभ टकाराव (Collision( की घटना वैज्ञानिकों देखी. लेकिन अब शोधकर्ताओं की एक टीम ने इसकी व्याख्या का दावा किया है.
कैसे पता लगा था इस घटना कावैज्ञानिकों ने इस साल के शुरुआत में ही घोषणा की थी कि उन्होंने दो न्यूट्रान तारों (जो अति घनत्व वाले तारे होते हैं) के टकराव से गुरुत्व तरंगों को पकड़ा था. इस घटना का GW190425 नाम दिया गया था. इसमें दो विशालकाय न्यूट्रॉन तारें का टकराव हुआ था जिससे एक अति विशालकाय युग्मक पिंड (binary object) बना था. इस प्रक्रिया से इससे बड़े युग्मक पिंड की घटना अभी तक नहीं देखी गई है.
किसने किया व्याख्या का दावा
इन पिंडों का भार हमारे सूर्य के भार से 3.4 गुना ज्यादा था एस्ट्रोफिजिसिस्ट की एक टीम का कहना है कि विशालकाय युग्मक तारे के निर्माण की व्याख्या की जा सकती है. यह नई थ्योरी ऑस्ट्रेलिया के ARC सेंटर फॉर ग्रैविटेशनल वेव डिस्कवरी के शोधकर्ताओं ने दी है. इस टीम की अगुआई मोनाश यूनिवर्सिटी के इसोबल रोमेरियो-शॉ ने की है.
क्या कहा शोधकर्ताओं नेशोधकर्ताओं का दावा है कि वे दोनों ही अत्याधिक भार वाले युग्म के पिंड (Binary object) की व्याख्या कर सकते हैं. और यह भी बता सकते हैं कि ऐसे सिस्टम परंपरागत रेडियो खगोलविद तकनीकों से क्यों पकड़ी नहीं जा सकतीं. इन तकनीकों से उनका अवलोकन क्यों संभव नहीं है.
खास प्रक्रिया के तहत होता है यह निर्माणरोमेरियो-शॉ के मुताबिक GW19025 का निर्माण एक प्रक्रिया के तहत हुआ था जिसे ‘अनस्टेबल केस बीबी मास ट्रांसफर’ कहा जाता है. यानि यह एक तरह का ब्लैक बॉडी भार हस्तांतरण का अस्थिर मामला है. इसकी शुरुआत न्यूट्रॉन तारे से होते हैं जिसका एक दूसरा साथी तारा होता है.यह एक ऐसा हिलियम ( He) तारा होता है जिसके केंद्र में कार्बन ऑक्सीजन (CO) होते हैं.
क्या हीलियम तारा निगल जाता है न्यूट्रॉन तारे को यदि हीलियम तारे का हीलियम हिस्सा पर्याप्त रूप से इतना फैल जाए कि वह न्यूट्रॉन तारे को निगल ले, तो हीलीयम का बादल न्यूट्रॉन तारे को अपने पास खींच लेता है. ऐसा हीलीयम के बादल के पूरी तरह से बिखरने से पहले ही हो जाता है. इस तरह दो पिंडों के मिलने से एक युग्मक पिंड (Binary Object) बन जाता है.
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुक जातीइसके बाद तारे के कार्बन ऑक्सीजन केंद्र में विस्फोट होता है और सुपरनोवा बन जाता है. वास्तव में तारों के इस महाविस्फोट को ही सुपरनोवा कहते हैं. यह सुपरनोवा एक न्यूट्रॉन सुपरनोवा में तब्दील हो जाता है. इस तरह से जो युग्मक (Binary) न्यूट्रॉन तारा बनता है , वह अतिविशालकाय होता है. यह इतना ज्यादा भारी होता है कि इसे रेडियो तरंगों से नहीं पकड़ा जा सकता.
यह घटना हमारी ही आकाशगंगा (Galaxy) यानि कि मिल्की वे (Milky Way) में हुई थी. इसे गुरुत्व तरंगों की मदद से पकड़ा गया था. यानि गुरुत्व तरंगों से इस घटना के होने का पता चला था. यह दूसरी बार था जब हमारे वैज्ञानिकों ने कोई गुरुत्व तरंगे पकड़ी थीं.
कैसे पता लगा था इस घटना कावैज्ञानिकों ने इस साल के शुरुआत में ही घोषणा की थी कि उन्होंने दो न्यूट्रान तारों (जो अति घनत्व वाले तारे होते हैं) के टकराव से गुरुत्व तरंगों को पकड़ा था. इस घटना का GW190425 नाम दिया गया था. इसमें दो विशालकाय न्यूट्रॉन तारें का टकराव हुआ था जिससे एक अति विशालकाय युग्मक पिंड (binary object) बना था. इस प्रक्रिया से इससे बड़े युग्मक पिंड की घटना अभी तक नहीं देखी गई है.
किसने किया व्याख्या का दावा
इन पिंडों का भार हमारे सूर्य के भार से 3.4 गुना ज्यादा था एस्ट्रोफिजिसिस्ट की एक टीम का कहना है कि विशालकाय युग्मक तारे के निर्माण की व्याख्या की जा सकती है. यह नई थ्योरी ऑस्ट्रेलिया के ARC सेंटर फॉर ग्रैविटेशनल वेव डिस्कवरी के शोधकर्ताओं ने दी है. इस टीम की अगुआई मोनाश यूनिवर्सिटी के इसोबल रोमेरियो-शॉ ने की है.
क्या कहा शोधकर्ताओं नेशोधकर्ताओं का दावा है कि वे दोनों ही अत्याधिक भार वाले युग्म के पिंड (Binary object) की व्याख्या कर सकते हैं. और यह भी बता सकते हैं कि ऐसे सिस्टम परंपरागत रेडियो खगोलविद तकनीकों से क्यों पकड़ी नहीं जा सकतीं. इन तकनीकों से उनका अवलोकन क्यों संभव नहीं है.

इस तरह के टकराव से बहुत ही ज्यादा मात्रा में ऊर्जा निकलती है.
खास प्रक्रिया के तहत होता है यह निर्माणरोमेरियो-शॉ के मुताबिक GW19025 का निर्माण एक प्रक्रिया के तहत हुआ था जिसे ‘अनस्टेबल केस बीबी मास ट्रांसफर’ कहा जाता है. यानि यह एक तरह का ब्लैक बॉडी भार हस्तांतरण का अस्थिर मामला है. इसकी शुरुआत न्यूट्रॉन तारे से होते हैं जिसका एक दूसरा साथी तारा होता है.यह एक ऐसा हिलियम ( He) तारा होता है जिसके केंद्र में कार्बन ऑक्सीजन (CO) होते हैं.
क्या हीलियम तारा निगल जाता है न्यूट्रॉन तारे को यदि हीलियम तारे का हीलियम हिस्सा पर्याप्त रूप से इतना फैल जाए कि वह न्यूट्रॉन तारे को निगल ले, तो हीलीयम का बादल न्यूट्रॉन तारे को अपने पास खींच लेता है. ऐसा हीलीयम के बादल के पूरी तरह से बिखरने से पहले ही हो जाता है. इस तरह दो पिंडों के मिलने से एक युग्मक पिंड (Binary Object) बन जाता है.
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुक जातीइसके बाद तारे के कार्बन ऑक्सीजन केंद्र में विस्फोट होता है और सुपरनोवा बन जाता है. वास्तव में तारों के इस महाविस्फोट को ही सुपरनोवा कहते हैं. यह सुपरनोवा एक न्यूट्रॉन सुपरनोवा में तब्दील हो जाता है. इस तरह से जो युग्मक (Binary) न्यूट्रॉन तारा बनता है , वह अतिविशालकाय होता है. यह इतना ज्यादा भारी होता है कि इसे रेडियो तरंगों से नहीं पकड़ा जा सकता.

यह घटना हमारी ही गैसेक्सी की है.
यह घटना हमारी ही आकाशगंगा (Galaxy) यानि कि मिल्की वे (Milky Way) में हुई थी. इसे गुरुत्व तरंगों की मदद से पकड़ा गया था. यानि गुरुत्व तरंगों से इस घटना के होने का पता चला था. यह दूसरी बार था जब हमारे वैज्ञानिकों ने कोई गुरुत्व तरंगे पकड़ी थीं.
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