मंगल पर बसाई जा सकती है इंसानी आबादी, बस हमें अपने DNA में करना होगा बदलाव

मंगल पर बसाई जा सकती है इंसानी आबादी, बस हमें अपने DNA में करना होगा बदलाव

मंगल (Mars) पर इंसान की बस्ती बसाना तो दूर कुछ घंटे भी नहीं रहा जा सकता, लेकिन वैज्ञानिकों को जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) से ये मुमकिन लगता है.

मंगल पर बसाई जा सकती है इंसानी आबादी, बस हमें अपने DNA में करना होगा बदलाव

नई दिल्ली: मंगल ग्रह (Mars) पर जीवन होने और जीवन के अनुकूल परिस्थितियां बनाने के लिए गहन शोध चल रहे हैं. नासा के रोवर मंगल पर घूम रहे हैं और जुलाई में एक और रोवर भेजने की तैयारी हो चुकी है. नासा मंगल से मिट्टी के नमूने लाने और इंसान को मंगल पर भेजने की तैयारी कर रहा है. लेकिन मंगल पर बस्ती बसाने का शोध किसी भी नई जानकारी से रुक नहीं रहा है. इस काम में जेनिटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) की भूमिका भी मदद कर सकती है.

बहुत मुश्किल है मंगल पर पहुंचना भीमंगल पर इंसान का कुछ समय तक जाना है चुनौतियों से कम भरा नहीं है. उच्च विकरण का सामना, बहुत ही कम तापमान जैसी कई मुश्किलें हैं जो इंसान की बस्ती तो दूर कुछ घंटों के लिए भी मंगल पर इंसान का रहना मुहाल कर दें.

खुद को बदलना पड़ सकता है


फिर कोई भी इंसान हमेशा केलिए तो मंगल पर रहेगा नहीं ऐसे में उनकी पृथ्वी पर वापसी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हम इंसानों को मंगल पर या किसी अन्य ग्रह पर लंबे समय के लिए या हमेशा के लिए भी, रहना है  तो उसके लिए हमें खुद में ही में आधारभूत परिवर्तन करने होंगे.

जेनिटिक इंजीनियर की भूमिका निश्चित हैहाल ही में न्यूयॉर्क एकेडमी ऑफ साइंस की ओर से आयोजित वेबिनार में हस्टन के लूनार एंड प्लैनेटरी इंस्टीट्यूट की एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट और जियोमाइक्रोबायोलॉजिस्ट कैन्डा लिंच ने कहा कि अगर हमें मंगल पर लंबे समय के लिए बसना है तो इसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग और अन्य आधुनिक तकनीकों की भूमिका होना तय है.

Mars
मंगल ग्रह पर रहने की स्थिति बहुत ही कठिन हैं,


लेकिन वैज्ञानिक आगे बढ़ रहे हैं इस दिशा मेंएलिनिएटिंग मार्स : चैलेंजेस ऑफ स्पेस कॉलोनाइजेशन विषय पर कैन्डा ने कहा कि इस तरह की तकनीकी ऐसे मामले में जरूरी हो सकती है. न्यूयार्क के कर्नल यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल स्कूल के जेनेटिसिस्ट क्रिस्टोफर मेसन का मानना है कि लोगों को लगता है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग को लेकर कल्पनाएं ज्यादा होती है.  लेकिन अब ऐसा नहीं है. वैज्ञानिकों ने टार्डीग्रेड नामके जीव की जीन्स मानवीय कोशिकाओं में डालने में सफलता पा ली है जो अंतरिक्ष में रह सकते हैं. इन कोशिकाओं ने विकिरणों के प्रति ज्यादा प्रतिरोध दिखाया है.

ये उपाय भी तो अपनाए जा रहे हैंनासा और अन्य स्पेस एजेंसी पहले से ही अपने अंतरिक्ष यात्रियों  के बचाव के उपाय अपना रही है. इनके लिए खास कवच होता है जो उन्हें अंतरिक्ष यानों में विकिरण से बचाता है., उनके लिए कई तरह की दवाओं का उपयोग होता है. ऐसे में जेनेटिक तरीकों से बचाव के उपाय कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी अगर ये उपाय सुरक्षित हुए तो.

तो क्या हैं ये जीव और क्यों हैं खासटार्डीग्रोड्स में बहुत ही बेहतरीन हुनर होता है. वे बढ़िया विकिरण प्रतिरोधी होते हैं.टार्डीग्रोड्स बिना खाए 30 साल तक जीवित रह सकते हैं. इनके बारे में माना जाता है कि यह इंसान के बाद भी इस पृथ्वी पर जिंदा रहेंगे हो सकता है कि ये पृथ्वी पाए जाने वाले आखिरी प्राणी हों. इन्हें उबले पानी में डालने से, बर्फ की तरह जमा देने से, बहुत ही ज्यादा दबाव देने से ये मरते नहीं हैं. जीन के स्तर पर इनका यह गुण मानव के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है.

Mars
मंगल की हालातों के मुताबिक इंसान भी ढल सकते हैं.


इन गुणों के उपयोग से हो सकता है कि अंतरिक्ष यात्री मंगल से भी आगे जाने में सक्षम हों और शायद उन्हें इससे भी चुनौतीपूर्ण और खतरनाक जगह मिले जैसे बृह्सपति ग्रह के चांद यूरोपा जहां बर्फ के नीचे समुद्र हैं ठंडा होने के बाद भी वहां बहुत शक्तिशाली किरणें मिलती हैं. इन हालातों में  अगर हम खुद को बिना नुकसान पहुंचाए बिना, बेहतर बना सके तो हो सकता है कि जो जेनेटिक विज्ञानी कह रहे हों वह मुमकिन भी हो जाए. उन्हें तो यही उम्मीद है.

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