खगोलविदों ने बनाई खास गाइडबुक, बाह्यग्रहों पर जीवन तलाशने में करेगी मदद
खगोलविदों ने सुदूर बाह्यग्रहों (Exoplanets) से आने वाले प्रकाश के अध्ययन की एक खास गाइडबुक तैयार की जो वहां की जलवायु के बारे में बताने में मदद करेगी.

नई दिल्ली: पृथ्वी के बाहर जीवन की खोज बदस्तूर जारी है. उपलब्ध जानकारियों और आंकड़ों से वैज्ञानिक जीवन की संभावना की छोटी से छोटी जानकारी को भी नजरअंदाज नहीं करते. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अब बाह्य ग्रहों (Exoplanets) पर जीवन की संभावनाओं को तलाशने का नया तरीका निकाला है. शोधकर्ताओं ने एक तरह का जलवायु गाइडबुक (Guidebook) ही तैयार कर ली है जिससे किसी ग्रह की जलवायु (Climate) की जानकारी मिल सकेगी.
पुरानी जानकारी के आधार पर बनाया नया मॉडलवैज्ञानिक ग्रहों पर तारों के प्रकाश पड़ने के बाद आने वाली रोशनी का अवलोकन करते हैं और उसकी सतह के रंगों को माप कर उसका अध्ययन कर पता लगाते हैं कि वहां जीवन की क्या संभावना है. इस शोध की मदद से अब शोधकर्ताओं ने अब तक के किए गए जलवायु और उससे संबंधित रसायनविज्ञान मॉडल्स, तारों और बाह्यग्रहों के अध्ययन के आधार पर जुटाई गई जानकारी और खगोलविदों के किए अनुसंधानों की मदद से यह अनुमान लगाने का प्रयास कर सकेंगे कि किसी ग्रह पर जीवन कैसा हो सकता है.
एक कोड में बदली जा सकती है प्रक्रिया
शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी से ही टेलीस्कोप के जरिए इन ग्रहों से आने वाले प्रकाश या स्पैक्टम को एक कोड में बदला जा सकता है जिससे इन ग्रहों के वायुमंडल के हालात का पता चल सकता है. कर्नल यूनिवर्सिटी में कार्ल सेगन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक जैक मैडन और लीसा काल्टेनेगर ने यह अध्ययन किया.

स्पैक्ट्रम की भूमिका होती है अहमजैक ने बताया कि उनकी टीम ने इस बात का अध्ययन किया कि कैसे सुदूर सौरमंडलों के जीवन योग्य दायरे वाले अलग अलग ग्रहों की सतह पर जलवायु में अंतर हो जाता है. मैडन के मुताबिक ग्रह की सतह पर पड़ कर प्रतिबिंबित प्रकाश पूरे जलवायु पर प्रभाव तो डालता ही है, लेकिन वहां से पृथ्वी पर आने वाले स्पैक्ट्रम पर भी असर डालता है. ऐसी गणनाओं में वह विकिरण बहुत अहम होता है जो कोई ग्रह प्रकाश को प्रतिबिंबित और उत्सर्जित करता है, जबकि उसका खुद का कोई भी प्रकाश नहीं होता है.
ग्रहों पर पड़ने वाली और वहां से निकले वाली किरणेंग्रहों पर भी प्रकाश के अवशोषण, उत्सर्जन के सिद्धांत लागू होते हैं चमकदार पिंड प्रकाश प्रतिबिंबित करते हैं, काले पिंड प्रकाश अवशोषित करते हैं. अवशोषण के बाद उत्सर्जन अगल तरह से होता है जैसा की हमारी धरती इंफ्रारेड किरणों के रूप में उत्सर्जन करती है.
बहुत जरूरी जानकारी मिलती हैकिसी ग्रह पर आने वाली किरणें उसकी जलवायु में अहम योगदान देती है और जिससे तय होता है कि वहां जीवन के अनुकूल संभावनाएं कितनी हैं. इन ग्रहों ने आने वाले प्रकाश से पता चल सकता है कि वे सतह पर कितने गर्म और कितने ठंडे हैं. यह सीधे तौर पर जांच पाना संभव नहीं है. लेकिन इन ग्रहों से आने वाली रोशनी पर आसपास के तारों की रोशनी का असर भी होता है. ये उसे प्रभावित करते जिससे स्पैक्ट्रम पर असर होता है और इससे बाह्य ग्रहों की सतह और वायुमंडल की जानकारी तक प्रभावित हो सकती है.

कैसे मिलती है जानकारी इसका भी किया विश्लेषणहमारे सौरमंडल के ग्रहों के स्पैक्ट्रम के आधार पर ग्रहों के बारे में किस तरह की जानकारी मिलती है और किन किन जानकारियों का अनुमान लगाया जा सकता है, शोधकर्ताओं ने अपने अपने अध्ययन के आधार पर ही यह नया शोध किया है.
गाइडबुक की तरह करेगी काम
यह एकतरह की गाइडबुक की तरह काम करेगी. आने वाले समय में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और जायंट मैगेलन टेलीस्कोप को स्थापित होने के बाद बाह्य ग्रहों के स्पैक्ट्रम की और सटीक जानकारी मिलेगी. इन जानकारियों से सही निष्कर्ष निकालने में यह गाइडबुक मददगार साबित हो सकेगी और अन्य शोधकर्ता बेहतर नतीजे निकालने में सक्षम हो सकेंगे.
आनेवाले शोधों को मिलेगी बहुत मददइस शोधकर्ताओं का उम्मीद है कि अब जीवन की संभावना वाले बाह्यग्रहों के अध्ययन पर ध्यान लगाया जा सकेगा. अभी तक के मॉडल केवल हमारे सौरमंडल के आधार पर थे, लेकिन इस नई पद्धति से अन्य सुदूर तारों और उनके ग्रहों के जानकारी के मुताबिक भी नतीजे निकाले जा सकेंगे. इस शोधपत्र में शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया है कि उनके नतीजे बताते हैं कि सतह से आने वाली किरणों के स्पैक्ट्रम की जीवन संभावना वाले ग्रहों के अध्ययन के लिए खास भूमिका होगी.
पुरानी जानकारी के आधार पर बनाया नया मॉडलवैज्ञानिक ग्रहों पर तारों के प्रकाश पड़ने के बाद आने वाली रोशनी का अवलोकन करते हैं और उसकी सतह के रंगों को माप कर उसका अध्ययन कर पता लगाते हैं कि वहां जीवन की क्या संभावना है. इस शोध की मदद से अब शोधकर्ताओं ने अब तक के किए गए जलवायु और उससे संबंधित रसायनविज्ञान मॉडल्स, तारों और बाह्यग्रहों के अध्ययन के आधार पर जुटाई गई जानकारी और खगोलविदों के किए अनुसंधानों की मदद से यह अनुमान लगाने का प्रयास कर सकेंगे कि किसी ग्रह पर जीवन कैसा हो सकता है.
एक कोड में बदली जा सकती है प्रक्रिया
शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी से ही टेलीस्कोप के जरिए इन ग्रहों से आने वाले प्रकाश या स्पैक्टम को एक कोड में बदला जा सकता है जिससे इन ग्रहों के वायुमंडल के हालात का पता चल सकता है. कर्नल यूनिवर्सिटी में कार्ल सेगन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक जैक मैडन और लीसा काल्टेनेगर ने यह अध्ययन किया.

तारों और ग्रहों से आने वाले प्रकाश से ही काफी जानकारी मिलती है.
स्पैक्ट्रम की भूमिका होती है अहमजैक ने बताया कि उनकी टीम ने इस बात का अध्ययन किया कि कैसे सुदूर सौरमंडलों के जीवन योग्य दायरे वाले अलग अलग ग्रहों की सतह पर जलवायु में अंतर हो जाता है. मैडन के मुताबिक ग्रह की सतह पर पड़ कर प्रतिबिंबित प्रकाश पूरे जलवायु पर प्रभाव तो डालता ही है, लेकिन वहां से पृथ्वी पर आने वाले स्पैक्ट्रम पर भी असर डालता है. ऐसी गणनाओं में वह विकिरण बहुत अहम होता है जो कोई ग्रह प्रकाश को प्रतिबिंबित और उत्सर्जित करता है, जबकि उसका खुद का कोई भी प्रकाश नहीं होता है.
ग्रहों पर पड़ने वाली और वहां से निकले वाली किरणेंग्रहों पर भी प्रकाश के अवशोषण, उत्सर्जन के सिद्धांत लागू होते हैं चमकदार पिंड प्रकाश प्रतिबिंबित करते हैं, काले पिंड प्रकाश अवशोषित करते हैं. अवशोषण के बाद उत्सर्जन अगल तरह से होता है जैसा की हमारी धरती इंफ्रारेड किरणों के रूप में उत्सर्जन करती है.
बहुत जरूरी जानकारी मिलती हैकिसी ग्रह पर आने वाली किरणें उसकी जलवायु में अहम योगदान देती है और जिससे तय होता है कि वहां जीवन के अनुकूल संभावनाएं कितनी हैं. इन ग्रहों ने आने वाले प्रकाश से पता चल सकता है कि वे सतह पर कितने गर्म और कितने ठंडे हैं. यह सीधे तौर पर जांच पाना संभव नहीं है. लेकिन इन ग्रहों से आने वाली रोशनी पर आसपास के तारों की रोशनी का असर भी होता है. ये उसे प्रभावित करते जिससे स्पैक्ट्रम पर असर होता है और इससे बाह्य ग्रहों की सतह और वायुमंडल की जानकारी तक प्रभावित हो सकती है.

बाह्यग्रहों से आने वाले प्रकाश का स्पैक्ट्रम काफी कुछ बता देता है.
कैसे मिलती है जानकारी इसका भी किया विश्लेषणहमारे सौरमंडल के ग्रहों के स्पैक्ट्रम के आधार पर ग्रहों के बारे में किस तरह की जानकारी मिलती है और किन किन जानकारियों का अनुमान लगाया जा सकता है, शोधकर्ताओं ने अपने अपने अध्ययन के आधार पर ही यह नया शोध किया है.
गाइडबुक की तरह करेगी काम
यह एकतरह की गाइडबुक की तरह काम करेगी. आने वाले समय में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और जायंट मैगेलन टेलीस्कोप को स्थापित होने के बाद बाह्य ग्रहों के स्पैक्ट्रम की और सटीक जानकारी मिलेगी. इन जानकारियों से सही निष्कर्ष निकालने में यह गाइडबुक मददगार साबित हो सकेगी और अन्य शोधकर्ता बेहतर नतीजे निकालने में सक्षम हो सकेंगे.
आनेवाले शोधों को मिलेगी बहुत मददइस शोधकर्ताओं का उम्मीद है कि अब जीवन की संभावना वाले बाह्यग्रहों के अध्ययन पर ध्यान लगाया जा सकेगा. अभी तक के मॉडल केवल हमारे सौरमंडल के आधार पर थे, लेकिन इस नई पद्धति से अन्य सुदूर तारों और उनके ग्रहों के जानकारी के मुताबिक भी नतीजे निकाले जा सकेंगे. इस शोधपत्र में शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया है कि उनके नतीजे बताते हैं कि सतह से आने वाली किरणों के स्पैक्ट्रम की जीवन संभावना वाले ग्रहों के अध्ययन के लिए खास भूमिका होगी.
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