प्रवासी मजदूरों को मिला बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद, कॉरिडोर बनाएगा आत्मनिर्भर

प्रवासी मजदूरों को मिला बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद, कॉरिडोर बनाएगा आत्मनिर्भर

काशी (Kashi) में बन रहे विश्वनाथ कॉरिडोर (Vishwanath Corridor) में प्रवासी मजदूरों को काम देने का प्लान तैयार हो गया है, जिसके लिए हेल्प लाइन नंबर भी जारी हो गया है.

प्रवासी मजदूरों को मिला बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद, कॉरिडोर बनाएगा आत्मनिर्भर

वाराणासी. पूर्वांचल (Poorvanchal) में वापस लौटे मजदूरों (Migrant Laborers) के लिए बड़ी खुशखबरी है. ये खुशखबरी वाराणसी (Varanasi) के बाबा विश्वनाथ दरबार (Vishawanath Mandir) से मिली है, जहां उनके दो वक्त के रोटी का सहारा मिल गया है. खास बात ये है कि ये रोटी उन्हें किसी दया के सहारे नहीं, बल्कि उनके आत्मनिर्भरता के बल पर मिलेगी. दरअसल काशी में बन रहे विश्वनाथ कॉरिडोर में प्रवासी मजदूरों को काम देने का प्लान तैयार हो गया है, जिसके लिए हेल्प लाइन नंबर भी जारी हो गया है.

लॉकडाउन 4 में विश्वनाथ कॉरिडोर में निर्माण कार्य शुरू

वाराणसी में बन रहे विश्वनाथ कॉरिडोर में लॉकडाउन-4 की शुरुआत होते ही निर्माण कार्य शुरू हो गया था, जो निरंतर जारी है. ऐसे में निर्माण कार्य में मजदूरों की आवश्यकता आने वाले समय में और भी बढ़ सकती है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार में धर्मार्थ मंत्री नीलकंठ तिवारी ने वाराणसी में अधिकारियों के साथ बैठक कर निर्माण कार्य का जायजा लिया. वहीं इस निर्माण में आवश्यकता पड़ने वाले मजदूरों के लिए निर्देश जारी किया कि प्रवासी मजदूरों को कार्य दिया जाए, वो जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ के वापस घर लौट आए हैं.



1000 मजदूरों की आवश्यकता



विश्वनाथ मंदिर के कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने बताया कि विश्वनाथ कॉरिडोर 5 लाख स्क्वॉयर फीट में बन रहा है. ऐसे में फिलहाल सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए 1000 मजदूरों की आवश्यकता है. इस आवश्यकता की पूर्ति प्रवासी मजदूरों से पूरी की जाएगी. कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने खुद का पर्सनल नम्बर हेल्प लाइन नम्बर के रूप में जारी किया है और प्रवासी मजदूरों ने अपील की है कि जिसे भी काम की जरूरत है वो इनसे सीधे बात कर सकता हैं.

विश्वनाथ कॉरिडोर में बन रहे विश्वनाथ धाम में जिस तरह से प्रवासी मजदूरों को काम देने की बात हुई है. वो मजदूरों के लिए बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से कम नहीं है क्योंकि मेहनत मजदूरों कर आत्मनिर्भर तरीके से दो वक्त की रोटी कमाने वाले इन मजदूरों के लिए सबसे बड़ा चिंता उसी मजदूरी को लेकर थी, जिसे वो छोड़ के आ गए हैं लेकिन अब उन्हें चेहरे पर मुस्कान जरूर आएगी.

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