कोरोना से हम डरे हैं, जीवित हैं पर मरे हैं, पढ़ें आयुष्मान खुराना की कविताएं
आयुष्मान खुराना की कविताएं (Ayushmann Khurrana Poems): सिक्स पैक से नहीं बनते हैं मर्द, न ज्यादा कमाने से, न चिल्लाने से , न आंसू छिपाने से...

आयुष्मान खुराना की कविताएं (Ayushmann Khurrana Poems) : बॉलीवुड एक्टर आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) काफी फेमस हैं. आयुष्मान खुराना खुराना की एक्टिंग तो बेमिसाल है ही. साथ ही वो लिखते भी काफी बेहतर हैं. उनकी कई कविताएं अक्सर ही सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं. आयुष्मान खुराना कविता पाठ भी अकाफी उम्दा तरीके से करते हैं और उनकी कविता काफी प्रभावित भी करती है. कुछ समय पहले आयुष्मान खुराना ने कोरोना महामारी की वजह से पैदा हुए हालत पर कविता लिखी थी. आज हम आपके लिए आयुष्मान खुराना की सोशल मीडिया पोस्ट और ब्लॉग से उनकी कुछ चुनिन्दा कविताएं...
कोरोना पर कविता...
वो सामने वाली बिल्डिंग कुछ दिन पहले सील हो गई है,
तब से लोगों की जिंदगी कुछ तब्दील सी हो गई है.
उसी बिल्डिंग की नीचे वाली दुकान से तो सामान आता है,
वो बीमारी के बारे में बता देता तो क्या जाता,
और हम डरे हुए हैं,
जीवित हैं पर मरे हुए हैं,
हमको तो सिर्फ घर पर रहना है...
लड़ना उनको है, उन्हीं को सबकुछ सहना है'.
किताबें कभी चोरी नहीं होती...
इस देश में सब कुछ चोरी होता है,
पर किताबें कभी चोरी नहीं होती.
किताबें तो हक़ से माँगी जाती हैं,
लौटा देने के वादे के साथ,
जो कभी पूरा नहीं होता.
जिसको दर्द होता है असल में मर्द होता है...
सिक्स पैक से नहीं बनते हैं मर्द, न ज्यादा कमाने से
न चिल्लाने से , न आंसू छिपाने से
किसी और को ठंडक दे तो दिल उसका दिल दुखता है,
न ज्यादा कमाने से
कि जिसको दर्द होता है असल में मर्द होता है.
मुखौटे...
चहरे ये मुखौटे हैं
मुखौटे ही तो चहरे हैं
अन्दर का राम जला दिया
कैसे उल्टे पड़े दशहरे हैं
अपनी ही आवाज़ सुन ना पाएं
पूर्ण रूप से बहरे हैं
मन की नदी उफान पा ना सकी
पर हम दिखते कितने गहरे हैं
ये मुखौटे कोई उतार ना ले
लगा दिए लाखों पहरे हैं
चहरे ये मुखौटे हैं
मुखौटे ही तो चेहरे हैं.
कोरोना पर कविता...
वो सामने वाली बिल्डिंग कुछ दिन पहले सील हो गई है,
तब से लोगों की जिंदगी कुछ तब्दील सी हो गई है.
उसी बिल्डिंग की नीचे वाली दुकान से तो सामान आता है,
वो बीमारी के बारे में बता देता तो क्या जाता,
और हम डरे हुए हैं,
जीवित हैं पर मरे हुए हैं,
हमको तो सिर्फ घर पर रहना है...
लड़ना उनको है, उन्हीं को सबकुछ सहना है'.
किताबें कभी चोरी नहीं होती...
इस देश में सब कुछ चोरी होता है,
पर किताबें कभी चोरी नहीं होती.
किताबें तो हक़ से माँगी जाती हैं,
लौटा देने के वादे के साथ,
जो कभी पूरा नहीं होता.
जिसको दर्द होता है असल में मर्द होता है...
सिक्स पैक से नहीं बनते हैं मर्द, न ज्यादा कमाने से
न चिल्लाने से , न आंसू छिपाने से
किसी और को ठंडक दे तो दिल उसका दिल दुखता है,
न ज्यादा कमाने से
कि जिसको दर्द होता है असल में मर्द होता है.
मुखौटे...
चहरे ये मुखौटे हैं
मुखौटे ही तो चहरे हैं
अन्दर का राम जला दिया
कैसे उल्टे पड़े दशहरे हैं
अपनी ही आवाज़ सुन ना पाएं
पूर्ण रूप से बहरे हैं
मन की नदी उफान पा ना सकी
पर हम दिखते कितने गहरे हैं
ये मुखौटे कोई उतार ना ले
लगा दिए लाखों पहरे हैं
चहरे ये मुखौटे हैं
मुखौटे ही तो चेहरे हैं.
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