चक्रवाती तूफान अम्फान- मानसून में बारिश करने वाले बादल उड़ तो नहीं जाएंगे?
बंगाल की खड़ी में बना चक्रवाती तूफान ‘अम्फान’ अब सुपर साइक्लोन (Super Cyclone Amphan) बन गया. अक्टूबर 1999 के बाद यह पहला मौका है जब बंगाल की खाड़ी में कोई सुपर साइक्लोन बना है.

नई दिल्ली. भारतीय मौसम विभाग (IMD- India Meteorological Department ) का कहना है कि अम्फान तूफान की उच्चतम रफ़्तार 220-240 (अधिकतम 265) किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है. हवा की गति 220 किलोमीटर प्रति घंटा या उससे ज्यादा होने पर उसे सुपर साइक्लोन का दर्जा दिया जाता है. अब सवाल उठता है कि क्या इससे मानसून पर कोई असर होगा? आपको बता दें कि पिछले साल वायु तूफान की वजह से देश में मानसून के आने में देरी हुई थी.
क्या होगा मानसून पर असर- मौसम की जानकारी देने वाली निजी संस्था स्काईमेट (Skymet) के महेश पलावत का कहना है कि इस बात की संभावना बहुत कम है क्योंकि यह चक्रवात 21 मई तक खत्म हो जाएगा. इसके बाद क्रॉस इक्वेटोरियल प्रवाह शुरू होगा. हमें उम्मीद है कि इस साल दक्षिण पश्चिम मानसून समय पर देश में दस्तक देगा. भारत के लिए मानसूनी बारिश बेहद जरूरी है. क्योंकि मैदानी इलाकों के अधिकतर किसान खेती-बाड़ी के लिए मानसून की बारिश पर ही निर्भर रहते हैं.
तूफान का दिल्ली पर क्या असर होगा- महेश पलावत बताते हैं कि अम्फान तूफान की वजह से दिल्ली पर कोई असर नहीं होगा. दिल्ली और आस-पास के इलाकों में तापमान के और बढ़ने की आशंका बनी हुई है.
‘अम्फान’ (Super cyclone Amphan) तूफान का नाम थाईलैंड ने दिया है. इस तरह का सुपर साइक्लोन अपने पीछे बर्बादी छोड़ जाता है. यह तूफान साल 2014 में आए 'हुदहुद' तूफान (Cyclone hudhud) से काफी भयावह और विध्वंसक हो सकता है. 2014 में 'हुदहुद' ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे तटीय राज्यों के अलावा उत्तर प्रदेश समेत कई मैदानी राज्यों में भी भयंकर तबाही मचाई थी.अम्फान तूफान पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर, दक्षिणी एवं 24 उत्तरी परगना, हावड़ा में भारी तबाही मचा सकता है. इसके अलावा ओडिशा के मयूरभंज, बालासोर, भद्रक जैसे जिले में तूफान कहर मचा सकता है.
भारत के लिए मानसूनी बारिश क्यों जरूरी है? कृषि से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि खेती के लिए पानी पर अभी भी करीब 40 फीसदी लोग मानसून पर निर्भर है, पर सच्चाई यह है कि अनाज पैदा करने वाले ज्यादातर उत्तर भारतीय राज्यों, पंजाब, यूपी, हरियाणा, बिहार आदि में सिंचाई के दूसरे विकल्प मौजूद हैं, जिससे मानसूनी वर्षा पर उनकी निर्भरता घटी है.
पहले खेतों की सिंचाई बादलों से होने वाली वर्षा और उन नहरों पर टिकी थी जो सूखे की स्थिति में खुद भी सूख जाती थीं. लेकिन 1960 के बाद से ट्यूबवेल के जरिये खेतों को सींचा जाने लगा जिन पर मानसून की कमी खास असर नहीं डालती है.
बेशक समस्या अब केवल उन्हीं इलाकों में है जहां सिंचाई के लिए ट्यूबवेल जैसे साधनों का उपयोग नहीं किया रहा है और जहां किसान पूरी तरह से नहरों एवं मानसून पर आश्रित हैं. हालांकि ट्यूबवेल से सिंचाई का एक पक्ष यह है कि धीरे-धीरे कई इलाकों में भूजल स्तर गिरता जा रहा है, जो मानसून में कमी के चलते और संकटपूर्ण स्थिति में पहुंच जाएगा.
इसलिए सिंचाई के गैर-परंपरागत विकल्पों पर और काम करने की जरूरत है, जैसे नदीजोड़ योजनाओं को अमल में लाया जाए, ताकि देश का कोई खेत सिंचाई के अभाव में सूखने न पाए. जरूरत ऐसी योजनाओं की है, जिससे देश के किसी एक इलाके में आई बाढ़ से जमा हुए पानी को उन इलाकों में पहुंचाया जाए जहां उसकी जरूरत है.
कम बारिश से बढ़ी किसान और सरकार की चिंताएं- खरीफ फसलों की बुवाई 15 जून से ही शुरू हो जाती है. अगर जून में मानसूनी बारिश कम हुई तो खरीफ फसलों के उत्पादन पर इसका सीधा असर होगा. वहीं, दलहन फसलें भी बारिश का इंतजार कर रही हैं. इस साल कृषि विभाग ने बेहतर बारिश की उम्मीद करते हुए जिले में पिछले साल के मुकाबले लगभग लक्ष्य बढ़ा दिया है.
क्या होगा मानसून पर असर- मौसम की जानकारी देने वाली निजी संस्था स्काईमेट (Skymet) के महेश पलावत का कहना है कि इस बात की संभावना बहुत कम है क्योंकि यह चक्रवात 21 मई तक खत्म हो जाएगा. इसके बाद क्रॉस इक्वेटोरियल प्रवाह शुरू होगा. हमें उम्मीद है कि इस साल दक्षिण पश्चिम मानसून समय पर देश में दस्तक देगा. भारत के लिए मानसूनी बारिश बेहद जरूरी है. क्योंकि मैदानी इलाकों के अधिकतर किसान खेती-बाड़ी के लिए मानसून की बारिश पर ही निर्भर रहते हैं.
तूफान का दिल्ली पर क्या असर होगा- महेश पलावत बताते हैं कि अम्फान तूफान की वजह से दिल्ली पर कोई असर नहीं होगा. दिल्ली और आस-पास के इलाकों में तापमान के और बढ़ने की आशंका बनी हुई है.
भारत के लिए मानसूनी बारिश क्यों जरूरी है? कृषि से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि खेती के लिए पानी पर अभी भी करीब 40 फीसदी लोग मानसून पर निर्भर है, पर सच्चाई यह है कि अनाज पैदा करने वाले ज्यादातर उत्तर भारतीय राज्यों, पंजाब, यूपी, हरियाणा, बिहार आदि में सिंचाई के दूसरे विकल्प मौजूद हैं, जिससे मानसूनी वर्षा पर उनकी निर्भरता घटी है.
पहले खेतों की सिंचाई बादलों से होने वाली वर्षा और उन नहरों पर टिकी थी जो सूखे की स्थिति में खुद भी सूख जाती थीं. लेकिन 1960 के बाद से ट्यूबवेल के जरिये खेतों को सींचा जाने लगा जिन पर मानसून की कमी खास असर नहीं डालती है.
बेशक समस्या अब केवल उन्हीं इलाकों में है जहां सिंचाई के लिए ट्यूबवेल जैसे साधनों का उपयोग नहीं किया रहा है और जहां किसान पूरी तरह से नहरों एवं मानसून पर आश्रित हैं. हालांकि ट्यूबवेल से सिंचाई का एक पक्ष यह है कि धीरे-धीरे कई इलाकों में भूजल स्तर गिरता जा रहा है, जो मानसून में कमी के चलते और संकटपूर्ण स्थिति में पहुंच जाएगा.
इसलिए सिंचाई के गैर-परंपरागत विकल्पों पर और काम करने की जरूरत है, जैसे नदीजोड़ योजनाओं को अमल में लाया जाए, ताकि देश का कोई खेत सिंचाई के अभाव में सूखने न पाए. जरूरत ऐसी योजनाओं की है, जिससे देश के किसी एक इलाके में आई बाढ़ से जमा हुए पानी को उन इलाकों में पहुंचाया जाए जहां उसकी जरूरत है.
कम बारिश से बढ़ी किसान और सरकार की चिंताएं- खरीफ फसलों की बुवाई 15 जून से ही शुरू हो जाती है. अगर जून में मानसूनी बारिश कम हुई तो खरीफ फसलों के उत्पादन पर इसका सीधा असर होगा. वहीं, दलहन फसलें भी बारिश का इंतजार कर रही हैं. इस साल कृषि विभाग ने बेहतर बारिश की उम्मीद करते हुए जिले में पिछले साल के मुकाबले लगभग लक्ष्य बढ़ा दिया है.
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